8TH SEMESTER ! भाग- 129( Two Sore Truths-2)
"क्या हाल है बे टकले..."विपिन भैया के जाने के बाद अरुण बोला"अब हिलायेगा कैसे ... तेरा एक हाथ तो कुछ हफ़्तो के लिए गया काम से और दूसरा हाथ इस काबिल नही है कि तू हिला सके..."
"तुझे सबसे पहले यही बात मिली पूछने के लिए...??? मैने सोचा था कि तू थोड़ा बहुत दुखी होगा मेरी ये हालत देखकर "
"अबे दुखी तो मैं अब हुआ हूँ, तुझे होश मे देखकर..."अपनी चेयर को मेरी तरफ और पास खिसकाते हुए अरुण बोला"जब तक तू मरे हुए की तरह लेटा था ना तो मैं बेदम खुश था,मालूम है क्यूँ..."
"क्यूँ ? "
"क्यूंकी तब मैं तेरे सारे कॉपी-किताब को बेचकर मस्त पैसे बनाता...तेरे कपड़ो से मैं अपना रूम सॉफ करता... तेरा नया वाला लेदर जैकेट भी मैं ही पहन रहा हूँ... Infact, ये देख यहाँ भी पहन कर आया हूँ... जाना -पहचाना लग रहा ना ये जैकेट..?? लगेगा क्यों नहीं.. तेरा ही तो है... कितना खुश था मै, खामख़ाँ ज़िंदा हो गया बे तू "
"चल छोड़ ये सब और ये बता कि बड़े भैया ने ये क्यूँ कहा कि मैं मॉम -डैड से कुछ ना कहूँ... इधर चल क्या रहा है...??"
"क्यूंकी बड़े भैया ने सबको यही बता के रखा है कि तेरा एक्सीडेंट एक ट्रक के साथ हो गया था...."
"क्या यहाँ के डॉक्टर्स इतने काबिल है जो इन्हे मेरा इलाज़ करते वक़्त उन्हें मालूम नही चला कि मेरा एक्सीडेंट नही बल्कि जोरदार ठुकाई हुई है "
"डॉक्टर्स को सब पता है लेकिन बड़े भैया ने बात दबा ली और तू भी बात दबा लेना.... बकलोल की तरह सब उगल मत देना...समझा... और क्या पहुंच है बे तेरे भैया की... क्या काम करते है, साला एक कॉल मे वो थ्री स्टार वाला सर, सर कहते हुए आया था और बोला की... गौतम के बाप को उसने समझा दिया है..."
"कंस्ट्रक्शन और बिल्डर....."
"बहुत रहीस होगा तब तो...😍😍 बोल ना मुझे गोद ले ले..."
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बड़े भैया ने मेरा काम आसान कर दिया था क्यूंकी अब मुझसे घर तरफ कोई नही पुछने वाला था कि मुझे किसने मारा और क्यूँ मारा.... साथ ही साथ इससे मेरी इज़्ज़त भी घर तरफ बच रही थी, क्यूंकी एक्सीडेंट तो आए दिन होते रहते है. इसमे कोई बड़ी बात नही थी, लेकिन मार खाकर हॉस्पिटल मे पडे रहना..... ये काफ़ी इंसल्टग था. अरुण थोड़ी देर तक और मेरे साथ रहा और फिर वहाँ से चला गया . अरुण के जाने के बाद मेरे मॉम -डैड ने एंट्री मारी और उन्होंने मुझे और ज़्यादा एमोशनल कर दिया. उनके बाद मुझसे मिलने के लिए जैसे पूरी इंडिया की पब्लिक ही आ गयी ... एक जाता नही कि दूसरा इसके पहले ही पहुच जाता... मुझसे मिलने-जुलने वालो को मुझसे बात करने के लिए सॉफ मना किया गया था. मुझसे मिलने लगभग मेरे सारे रिलेटिव्स आए थे, वो भी जिन्हे मै जानता था और वो भी जिन्हे मै नहीं जानता था और जब उन्होने अंदर आकर मेरा हाल चाल पुछ लिया तो फिर मेरे दोस्तो क जमावड़ा लगना शुरू हो गया... नवीन, सुलभ, सौरभ, अमर सर यहाँ तक की अपना भोपु तक मुझसे मिलने अपने कॉलेज से यहाँ आया था, इतने लोगो को एक साथ देखकर सीना जैसे गर्व से चौड़ा हो गया था और ऐसे लगा जैसे कि बस कुछ ही देर मे मैं एक दम से ठीक हो जाउन्गा..लेकिन सच तो इससे कोसो दूर था. कुछ सच ऐसे थे जिसे मैं पहले से जानता था और कुछ सच ऐसे थे जिन्हे अभी जानना बाकी थी...
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जब मुझसे मिलने वालों कि भीड़ ख़तम ही नहीं हो रही थी तो ICU इंचार्ज ने मुझसे मिलने आए लड़को को मना कर दिया, सही किया उसने वैसे क्यूंकि मै एक ही सवाल का जवाब देते -देते थक गया था और मेरा सिर भारी होने लगा था. मैने अपने बेड पर एक हाथ से सर सहलाते हुए एक नर्स को आवाज़ दिया क्यूंकी मेरा सर अब हल्का-हल्का दर्द कर रहा था... मैने नर्स को अपने सर के दर्द के बारे मे बताया जिसके बाद उसने मुझे एक लाल कलर की टैबलेट दी
"पानी किधर है..."
"इसे मुँह मे रख कर चूसना है.."
"क्या "
"सीधे से मुँह मे रखो और चूस्ते रहो..."
"ओके..."(तू भी चूस ले मेरा...)
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उस लाल कलर की टैबलेट को मुँह मे रखने के बाद मैने चूसना शुरू ही किया था कि मेरे मुँह का पूरा टेस्ट बदल गया और मैने टैबलेट निकाल कर हाथ मे पकड़ लिया ताकि मौका देखकर चौका मार सकूँ. लेकिन थोड़ी देर बाद मुझे ध्यान आया कि इधर तो कोई मौका ही नही है...ये आइसीयू था ,जहाँ धूल का एक कण भी नही था ऐसे मे टैबलेट को उधर फेकना मतलब खुद के गले मे फंदा डालना था, वरना यदि डॉक्टर लोग देख लेते तो पता नहीं साले मेरे साथ क्या करते.... पर फिर मैने सोचा कि क्यूँ ना टैबलेट को बिस्तर के नीचे छिपा दूं ,लेकिन तभिच मेरे भेजे ने मुझे ऐसा करने से रोक दिया और बोला कि यदि मैने ऐसा करने की कोशिश भी की तो वो भयानक मशीन फिर से अपना राग अलापना शुरू कर देगी, क्यूंकि मुझे ऐसा करने के लिए अपने हाथ -पैर को कुछ ज्यादा ही हिलाना पड़ेगा. तब मुझे अरुण का ध्यान आया की अभी टैबलेट को इधर ही कही छिपा देता हूँ और जब अरुण आएगा तो उसे देकर बाहर फिकवा दूँगा...कितना होशियार हूँ मैं भी. साला किसी कि नजर ना लग जाए मुझे.
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उस दिन रात को मेरी आँखो से नींद गायब थी क्यूंकी रह-रह कर मुझे दीपिका और नौशाद के करतूत याद आ रहे थे. नौशाद का तो फिर भी समझ मे आता है लेकिन दीपिका ने मुझे क्यूँ फँसाया ? और गौतम के बाप के साथ उसका क्या रिश्ता है ? ये मेरे समझ से परे था... लेकिन इस समय मेरे अंदर एक चीज़ नौशाद और दीपिका के लिए एकदम सेम और ईक्वल थी और वो थी मेरा गुस्सा ,उन दोनो से मेरे बदला लेने की चाहत. मुझे मालूम था कि इस वक़्त जैसे मैं उनके बारे मे सोच रहा हूँ वैसे वो भी मेरे ही बारे मे सोच रहे होंगे. इस वक़्त उनकी फट के चौराहा हो गई होगी क्यूंकी उन दोनो ने ही ये सोचा था कि मैं ज़िंदा नही बचूँगा...लेकिन हुआ ठीक उल्टा और मेरे दरिंदेपन से तो वो दोनों वाकिफ ही है, जिसका प्राइम एक्सापल.. गौतम की हॉस्टल मे पेलायी थी. वैसे गौतम का क्या हुआ, ये तो मैने किसी से पूछा ही नहीं...?? साला जिन्दा भी है या मर गया....??
कुछ और भी चीज़े मेरी ज़िंदगी मे उल्टी हो चुकी थी जिसका मुझे अंदाज़ा नही था....मैं हॉस्पिटल मे हर दिन सुबह उठता ,कुछ ख़ाता-पीता और फिर सो जाता. दोपहर मे मैं फिर उठता ,फिर कुछ ख़ाता-पीता और सो जाता. उसके बाद मैं डाइरेक्ट शाम को उठकर दिन की आख़िरी खुराक लेकर फिर से सो जाता था.....हॉस्पिटल मे मेरे दिन ऐसे ही बीत रहे थे कि मुझे एक दिल को चीर देने वाली बात पता चली...
इस समय अरुण मेरे साथ बैठा इधर -उधर कि बकवास कर रहा था कि मैने उससे पुछा....
"अबे आज तारीख क्या है..."
"उम्म...मेरे ख़याल से आज 26 होना चाहिए..." अंदाज़ा लगाते हुए अरुण ने कहा..
"बक्चोद है क्या 25 अक्टूबर को तो ये कांड हुआ था जब मैं घर जा रहा था...मेरे ख़याल से आज 2-3 नवंबर होगा...क्यूँ ? साला 28 नवंबर से एग्जाम है थर्ड सेमेस्टर के और मैं यहाँ बेड पर लेटा हुआ हूँ... खैर कोई बात नहीं,कौन सा हॉस्टल मे रहता तो पढ़ाई ही करता... असली पढ़ाई तो पेपर के एक दिन पहले ही होती है, हम इंजीनियर्स की... साला साल भर पढ ले तो.. दुनिया को 3rd dimension से 5th dimension मे ट्रांसफर कर दे..."
"About that....Arman ...."
"हां बोल.."
"एक..एक्चु... एक्चुअली.... एग्जाम ख़तम हो चुके है और आज 26 अक्टूबर नहीं, 26 दिसंबर है, तू लगभग 2 महीने तक कोमा मे रहा था... मतलब पूरी तरह कोमा नहीं कह सकते... तुझे बीच -बीच मे होश आता था.. तू कुछ देर के लिए अपनी आँखे खोलता..पर किसी से कुछ बोलता नहीं था... फिर तू अपनी आँखे बंद कर लेता.... ना तू कोई जवाब देता, ना कुछ समझता... सिर्फ आँख खोल कर कुछ देर के लिए ICU की छत को ताकता रहता और फिर... फिर से सो जाता... डॉक्टर ने तो ये तक कह दिया था की यदि तुझे होश भी आया तो तू किसी काम नहीं रहेगा... चीजों को समझने की तेरी समझ धूमिल होती जायेगी और एक दिन तू खुद बहुत ज्यादा कंफ्यूज हो जाएगा.... लेकिन लगता है उस डॉक्टर कि डिग्री फर्जी है... तू तो पहले के माफिक़ एकदम रैपचिक है बीड़ू...
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"Wow... ये तो मुझे भी मालूम था की तू 2 महीने तक हॉस्पिटल मे था...लेकिन मुझे ये नही मालूम था कि तेरा ट्रक के साथ एक्सीडेंट नही बल्कि गौतम के बाप के कहने पर तेरी ठुकाई हुई थी....इन शॉर्ट, मुझे तो तूने कभी ऐश और गौतम के बारे मे नहीं बताया ..."वरुण बोला...
"विपिन भैया ने सिचुयेशन हहैंडल कर लिया था...वो नही चाहते थे कि मॉम -डैड को मेरी लड़ाई के बारे मे पता चले...."
"बहुत बड़े-बड़े झंडे गाड़े है भाई तूने... तेरी कॉलेज लाइफ मे..."
"एक मिनिट रुक..."मैं वहाँ से उठा और अरुण का मोबाइल माँगा ,ताकि निशा को कॉल करके उसके डैड का हाल-चाल जान सकूँ.... निशा को कॉल करने की एक और वजह ये भी थी कि मुझे अब कुछ बेचैनी सी महसूस हो रही थी और ऐसी सिचुयेशन मे एक लड़की जो आपके दिल के करीब हो वो कुछ ऐसा कर जाती है कि दिल को सुकून सा मिलता है....
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"अब क्या हालत है..."निशा के कॉल रिसीव करते ही हाल -चाल जानने के लिए मैने पूछा
"मैं ठीक हूँ, मुझे क्या हुआ है..."
"अबे.. मै तेरे बारे मे नही.... तेरे बाप...सॉरी... अंकल जी के बारे मे पुछ रहा हूँ..."
"वो भी एक दम ठीक है, शाम तक लीव मिल जाएगी..."
"सेक्स करेगी,बहुत मन हो रहा है..."ऐसा मैने जान बूझकर कहा ताकि निशा मुझे फटकारे जिससे मुझे थोड़ा सुकून मिले....
"नींद की गोलिया मेरे डैड ने खाई है... लेकिन लगता है असर तुम्हारे उपर हो रहा है....ये कोई वक़्त है ये सब बात करने का... तुम्हारे अंदर ज़रा सी भी इंसानियत और समझ नही है क्या जो सेक्स करने को कह रहे हो... इधर मेरे डैड तुम्हारी वजह से बीमार पड़े है ,मेरी माँ उदास है और तुम सेक्स करने को कह रहे हो... तुम लड़को को सिवाय उसके कुछ दीखता नहीं क्या..?? दो दिन भी नहीं रह सकते... और फिर जब करने की बारी आएगी तो एकदम से स्वाहा हो जाओगे... Boys areee......"